भारतीय खाने की जान है ‘दाल’, लेकिन ये हमारी थाली में आई कहां से?

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bhartiye daal

भारतीय खाने की जान है ‘दाल’, लेकिन ये हमारी थाली में आई कहां से?

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ऑनलाइन फ़ूड सर्विसेज़ की दुनिया में आप दाल-चावल ऑर्डर भी कर सकते हैं, लेकिन वही बात है कि दाल चावल भी ऑर्डर कर के खाएं!! लॉकडाउन में तो कुछ न कुछ सबने सीख ही लिया है. दाल के बारे में एक दिलचस्प फ़ैक्ट ये है कि हमारे देश दाल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है.

सुकून वाला खाना – दाल-चावल

daal rice

हम भारतीयों को सुकून दो ही चीज़ों से मिलता है- चाय और घी में छौंकी घर की बनी दाल. न जाने इन साधारण सी चीज़ों में क्या जादू है कि मूड कितना भी खराब हो तुरंत ठीक हो जाता है. दाल और चावल से हर इंडियन ख़ुद को कनेक्टेड महसूस करता है. हमारे यहां कई तरह की दाल होती है. अंकुरित चने मूंग की भी दाल बनती है और मटर की भी. तड़के वाली दाल भी बनती है और बघार वाली भी. यहां तक कि सब्ज़ियों और मांस-मछली में डालकर भी दाल बनाई जाती है!

राज्य अलग, पसंदीदा दाल भी अलग

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विविधताओं के देश भारत का खाने, मसाले आदि में भी विवधता है. मसालों का लोभ ही तो विदेशियों को हमारी मिट्टी तक खींच लाया. अलग-अलग क्षेत्र में दाल बनाने की विधि भी अलग है. कहीं दाल में सिर्फ़ नमक हल्दी डालते हैं तो कहीं मसाले, तो कहीं गुड़ और मिठास भी!

वेद-पुराणों में दाल का उल्लेख

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फ़ूड हिस्टोरियन के टी अचाया ने अपनी किताब इंडियन फ़ूड: अ हिस्टोरिकल कम्पेनियन में लिखा है कि दाल का उल्लेख यजुर्वेद, ऋग्वेद, मार्कंडेय पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है. उनका ये भी कहना है कि श्री राम को ‘कोसुमल्ली’ बहुत प्रिय थी, इसमें खीरा और कच्चा नारियल और नींबू का रस भी मिलाया जाता था. वैदिक काल में दाल ग़रीबों की भूख मिटाती थी ऐसा के टी अचार्या का कहना है.

बौद्ध और जैन साहित्य में दाल का उल्लेख

400 ईसा पूर्व के बौद्ध और जैन साहित्य में भी दाल के बारे में लिखा गया है. इन टेक्स्ट्स में मटर की दाल, अरहर, तुअर, चने की दाल का उल्लेख है. साथ ही ये भी कहा गया है कि ये एलेक्ज़ैंडेरिया से भारत पहुंची. 350 ईसा पूर्व के बाद राजमा हमारी थाली में आया. बौद्ध काल में दाल को भरकर एक बड़े परांठे जैसी स्वीट डिश बनाई जाती थी.

दक्षिण भारतीय खाने में भी दाल का भरपूर इस्तेमाल

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दक्षिण भारतीय खाने में दाल का भरपूर इस्तेमाल होता है. चाहे वो इडली हो, डोसा हो, वड़ा हो या सांभर. 2000 ईसा पूर्व में पूर्णिमा और दिवाली के दिन दाल भरे मीठे परांठे, वड़े बनाए जाते थे. तिरुपती मंदिर में भी भगवान वेंकटेश को उड़द दाल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं. अचाय के अनुसार, 30 रसोइये रोज़ाना 70 हज़ार लड्डू तैयार करते हैं.

भारत के पुराने साहित्यों में भी उल्लेख

मध्य प्रदेश के कल्याण वंश के राजा सोमेश्वर ने 1130 में अपनी किताब, मानसोल्लास में दाल और दाल से बनने वाले व्यंजनों का उल्लेख किया है. इस साहित्य के मुताबिक विडालपक नामक व्यंजन पांच तरह के दाल (चना, राजमा, मसूर, मूंग और तुअर) का आटे को मिलाकर बनाया जाता था.

चंद्रगुप्त मौर्य की शादी के दावत में भी थी दाल

दाल सदियों पहले से हम भारतीयों के खाने का अहम हिस्सा रही है. The Better India के एक लेख के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य की शादी के दावत में घुघनी (एक तरह की दाल) थी. राजपूत राजकुमारी जोधा बाई ने मुगल खाने में पंचमेल दाल को जगह दिलाई. ये दाल मुग़लों को इतनी पसंद आई कि शाह जहां ने जब तक गद्दी संभाली, ये शाही पंचमेल दाल बन चुकी थी.

दाल के बिना अधूरा है हमारा खाना

बिहार में दाल को ही पीसकर सत्तू बना लिया गया. इसके अलावा दाल से फुलौरी, तिलौरी, दही वड़ा, सब तो दाल से ही बनाया जाता है.  दाल से ही गुजरात में खांडवी बनती है. पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां छोलार डाल यानि चने की दाल ज़्यादा पसंद किया जाता है. फिर चने की दाल को शाकाहारी तरीके से पकाना हो या उसमें मछली मिलाकार डिश तैयार करना हो. ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दाल के बिना हम भारतीयों का खाना अधूरा लगता है. सब्ज़ियां चाहे कितनी भी हो थाली में अगर दाल न हो तो लगता है खाने में कुछ बाक़ी रह गया.

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