आज के समय में हर कोई अपने आप में स्वंतत्र है वह अपने आप में छोटे बड़े फैसले लेने के लिए आजाद है लेकिन क्या इस प्रकार की आजादी सन 1947 से पहले मुमकिन थी | जी नहीं ,क्योंकि उससे पहले हम परतन्त्र्त थे हमे अपने फैसले लेने का हक नहीं था | लेकिन क्या आज की यह आजादी हमे ऐसे ही मिली ,जी नहीं ना जाने कितने वीर क्रांतिकारियों ने अपने आप को इस बलिदान के लिए समर्पित किया | तो आइये जानते हैं उन्ही में से एक महान क्रांतिकाररी रामप्रसाद बिस्मिल के बारे में –
जन्म –
जी हाँ स्वतंत्रता प्राप्ति के महान क्रांतिकारियों में से एक वीर पुरुष रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को भारत प्रान्त के उत्तर प्रदेश राज्य के शाहजहाँपुर जिले में हुआ था | इनके पिता मुरलीधर वा माता मूलमती ने 7 वर्ष की आयु से ही इन्हे हिंदी अक्षरों का ज्ञान कराया | पिता मुरलीधर इनकी शिक्षा को लेकर इनके बचपन से कड़क रहते थे |
शिक्षा –
घर पर ही हिंदी अक्षरों का ज्ञान आदि सिखने के साथ साथ इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव से सम्प्पन हुई जैसे ही यह 9वीं में आये तो यह आर्य समाज की संस्था के सम्पर्क में आने लगे | इस संस्था से जुड़ने के बाद इनके जीवन की दिशा ही बदल गयी | और इनके जीवन में एक नया मोड़ शुरू हुआ स्वंत्रता प्राप्ति का |
स्वंत्रता प्राप्ति के लिए भागिदारी-
जब वह 18 वर्ष के थे तब स्वाधीनता सेनानी भाई परमानन्द को ब्रिटिश सरकार ने ‘ग़दर षड्यंत्र’ में शामिल होने के लिए फांसी की सजा सुनाई इस वाकये को देखकर रामप्रसाद बहुत आश्चर्यचकित हुए और ‘मेरा जन्म’ नामक एक कविता लिखी और उसे स्वामी सोमदेव को दिखाया। इस कविता में उन्होंने व्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाने की बातों का सम्मलित किया |
और सन 1916 में पढ़ाई छोड़ कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की पूरे लखनऊ शहर में शोभायात्रा में सम्मलित होकर स्वंत्रता प्राप्ति की आग में कूद पड़े | और इसी दौरान इन्होने अपनी एक पुस्तक ‘अमेरिका की स्वतंत्रता का इतिहास’ प्रकाशित की | जिसे बाद में जायदा दिनों तक उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया |
मैनपुरी षडयन्त्र-
अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए इन्होने एक क्रांतिकारी संगठन ‘मातृदेवी’ की स्थापना की | और अपने इस संगठन को मजबूत करने के लिए सन 1918 में 3 बार डकैती भी डाली और मैनपुरी ,इटावा ,आगरा में युवाओं को जोड़ने के लिए स्वंत्रता प्राप्ति के लिए उकसाया । और उसी समय चल रहे दिल्ली अधिवेसन में पुलिस ने इन्हे पकड़ने की कोशिश की मगर ये भागने में सफल रहे | और इसी प्रकार ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ मुकदमे में ब्रिटिश जज ने फैसला सुनते हुए बिस्मिल और दीक्षित को भगोड़ा घोषित कर दिया। हालांकि सन 1920 में इन्हे बाद में इस केस से रिहा कर दिया |
सन 1921 में उन्होंने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में भाग लिया और मौलाना हसरत मोहनी के साथ मिलकर ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव व्रिटिश सरकार के सामने रखा लेकिन इसे ख़ारिज कर दिया गया |
काकोरी कांड-
3 अक्टूबर 1924 को हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन पार्टी का गठन शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेश चन्द्र चटर्जी व राम प्रसाद बिस्मिल ने किया | पार्टी को सुचारु रूप से चलाने के लिए हुई धन की पूर्ती करने के लिए सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई | इसमें राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी,और अन्य लोगों को इक्खट्टा कर 10 लोगों ने लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर ट्रेन रोककर 9 अगस्त 1925 को सरकारी खजाना लूट लिया।
फांसी की सजा-
काकोरी कांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने 26 सितम्बर 1925 को बिस्मिल के साथ अन्य 40 को गिरफ्तार कर लिया | जिसमे से 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में रामप्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह फांसी दे दी गयी। और रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया।