Sirmaur Kiwi Farmer Narendra Singh Panwar – भारत में विभिन्न प्रकार के फलों का उत्पादन किया जाता है, जो न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होते हैं बल्कि सेहत के लिए लाभदायक होते हैं। ऐसे में भारतीय किसानों का रूझान विदेशी फल उगाने की तरफ भी तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी वजह से कीवी जैसे फल की खेती की जा रही है।
इस काम को करने वाले सबसे ज्यादा किसान हिमाचल प्रदेश से आते हैं, क्योंकि वहाँ का जलवायु और ठंडा मौसम कीवी की खेती करने के लिए बिल्कुल अनुकूल है। ऐसे में नरेंद्र सिंह पंवार (Sirmaur Kiwi Farmer) ने भी कीवी की खेती करने का फैसला लिया, जिसके जरिए वह सालाना 15 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं।
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कैसे आया कीवी उगाने का आइडिया
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में थलेडी गाँव के रहने वाले नरेंद्र सिंह पंवार आज एक कीवी उत्पादक किसान हैं, जो लंबे से समय से इस फल की खेती कर रहे हैं। नरेंद्र सिंह पंवार ने कीवी के पौधे पहली बार साल 1993 में देखे थे, जिसके बाद उनके मन में इस फल की खेती करने की इच्छा जगने लगी। उन्होंने कीवी के पौधों की रोपाई और उसकी खेती के लिए वाइएस बागवानी एंव वानिकी विश्वविद्यालय में कार्यरत डॉक्टर धर्मपाल शर्मा की मदद ली। नरेंद्र सिंह ने डॉक्टर धर्मपाल से कीवी के पौधों की रोपाई, मिट्टी और जलवायु समेत छोटी से छोटी बारिकियाँ सीखी, ताकि वह कीवी की खेती कर सके।
इस तरह कीवी की खेती से जुड़ी सारी जानकारी जुटाने के बाद नरेंद्र सिंह पंवार ने कीवी के 170 पौधे खरीदे और उन्हें अपनी जमीन में बो दिया, इस तरह सिरमौर जिले में पहला कीवी बगीचा शुरू किया गया था।
कीवी की खेती में सिरमौर जिला सबसे आगे है
नरेंद्र सिंह द्वारा कीवी की खेती किए जाने के बाद हिमाचल में कई किसानों ने इस फल के जरिए मुनाफा कमाने का फैसला किया। हालांकि भारत में कीवी की हेवर्ड प्रजाति ही सबसे ज्यादा और अच्छे तरीके से उगाई जा सकती है, जिसकी पैदावार 4, 000 से 6, 000 फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होती है।
यही वजह है कि हिमाचल के ऊंचे पहाड़ी इलाकों में किसान हेवर्ड प्रजाति की कीवी उगा रहे हैं, जिसमें सिरमौर जिला सबसे आगे है। हालात यह हैं कि इस जिले के किसान इतनी भारी मात्रा कीवी का उत्पादन कर रहे हैं कि न्यूजीलैंड अपने देश के फल की खेती में पिछड़ता जा रहा है।
कीवी की खेती में मिलती है सब्सिडी
किसान कीवी की खेती बेहतर ढंग से कर पाए, इसके लिए उन्हें बैंक से लोन और सब्सिडी जैसे सुविधाएँ भी दी जाती हैं। नरेंद्र सिंह पंवार ने साल 2019 में उद्यान विभाग के जरिए बागवानी विकास परियोजना के तहत 4 लाख रुपए का लोन लिया था। इस लोन में उन्हें 50 प्रतिशत छूट यानी 2 लाख रुपए की सब्सिडी दी गई थी।
इसके बाद नरेंद्र सिंह पंवार ने अपनी निजी जमीन में 170 कीवी के पौधों की रोपाई की थी, जिसके फलस्वरूप आज वह 340 कीवी के पौधे लगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। जब नरेंद्र सिंह पंवार ने साल 1998 में पहली बार कीवी का बगीचा बनाया था, तो उन्होंने 40 क्विंटल कीवी का उत्पादन किया था।
सालाना 15 लाख रुपए की कमाई
इस तरह एक साल कीवी की खेती करने के बाद नरेंद्र सिंह पंवार उसकी मार्केटिंग के लिए चंडीगढ़ जाते थे, इस तरह अगले साल उनके बगीचे में 130 क्विंटल कीवी का उत्पादन हुआ था। नरेंद्र सिंह ने अपने बगीचे की कीवी को दिल्ली की फल मंडी में बेचा था, जहाँ उन्हें प्रति किलो कीवी के लिए 140 से 170 रुपए मिलते हैं।
इस तरह साल भर कीवी का उत्पादन कर उसे शहर की अलग-अलग मंडियों में बेचने से नरेंद्र सिंह पंवार सालाना 15 लाख रुपए तक की कमाई बहुत ही आसानी से कर लेते हैं। हालांकि आने वाले सालों में नरेंद्र सिंह को अपनी आय बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि के पौधे साल दर साल अच्छी फसल पैदा करते हैं।
बगीचे की देखभाल और खेती की बारिकियाँ
नरेंद्र सिंह पंवार की माने तो कीवी की खेती के लिए सिर्फ ठंडी जलवायु का होना ही काफी नहीं है, बल्कि इस फल को उगाने के लिए किसान को छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखना पड़ता है। कीवी के पौधों को बहुत ज्यादा देखभाल और सिंचाई की जरूरत पड़ती है, इसलिए बगीचे में नियमित रूप से पानी देना आवश्यक है। इतना ही नहीं कीवी के पौधे में भारी और बड़े फल लगते हैं, जिसकी वजह से उनमें कीड़े लगने का ख तरा बना रहता है।
यही वजह है कि बगीचे में हर वक्त किसी न किसी व्यक्ति को पौधों की देखभाल करनी पड़ती है, इसके साथ ही पौधों पर नियमित रूप से दवाई का छिड़काव भी करना जरूरी है। नरेंद्र सिंह पंवार ने अपने बगीचे में 4 से 5 आदमियों को काम पर रखा है, जो पौधों की देखभाल और सिंचाई की जरूरतों को पूरा करते हैं। इसके साथ ही नरेंद्र सिंह पंवार का परिवार भी बगीचे में काम करता है, क्योंकि मिट्टी की उर्वरता, सिंचाई के साथ जुटाना और पौधों को छोटे-छोटे कीड़ों से बचाना बहुत ही बारीक काम है।
पोलीनेशन का काम करता है कीवी
आप में से बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि कीवी के पौधों में फूल भी आते हैं, जो पोलीनेशन में अहम भूमिका निभाते हैं। इस तरह बगीचे में पौधों पर कीवी का फल तब आता है, जब फीमेल और मेल पौधों के बीच पोलीनेशन की प्रक्रिया पूरी होती है।
वैसे तो पोलीनेशन के प्रक्रिया के लिए तितली और मधुमक्खी जैसे जीव जिम्मेदार होते हैं, लेकिन कीवी की खेती करने वाले किसान इस काम को खुद करना पसंद करते हैं। इसके लिए वह फीमेल और मेल पौधों को आपस में टच करवाते हैं, जिससे पोलीनेशन की प्रक्रिया पूरी होती है और पौधों पर फल आना शुरू हो जाता है।
क्षेत्र में तेजी से हो रहा है कीवी का उत्पादन
पहाड़ी क्षेत्रों में कीवी का उत्पादन वहाँ रहने वाले लोगों और किसानों को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करता है, क्योंकि इन इलाकों में रोजगार के अवसर बहुत ही कम होते हैं। ऐसे में हिमाचल के अलग-अलग जिलों में कीवी की खेती की जा रही है, ताकि उससे तैयार फसल को शहरों में बेचा जा सके।
इतना ही नहीं सिरमौर में विभिन्न राज्यों के किसान कीवी के बगीचे देखने आते हैं और वहाँ के किसानों से फसल उगाने की बारिकियाँ सीखते हैं, हालांकि गर्म राज्यों में इस फल को उगा पाना बहुत ही मुश्किल काम है।