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जब संसद भवन बना, तो इसका गुंबद बहुत ही ऊंचा बनाया गया. सेंट्रल हॉल का गुंबद पूरे संसद का सेंटर है. ऐसे में उस समय जब पंखे लगाने की बारी आई तो छत काफी ऊंची थी, जिसके कारण सीलिंग फैन लगाना मुश्किल हो रहा था. लंबे डंडे के जरिए भी पंखे लगाने की कोशिश की गई लेकिन बात नहीं जमी. इसके बाद सेंट्रल हॉल की छत की ऊंचाई को ध्यान में रखते हुए अलग से खंभे लगाए गए. फिर उन पर उल्टे पंखे लगाए गए, जिससे हॉल के कोने-कोने तक हवा पहुंच सके. तब से ही ये पंखे इसी तरह लगे हुए हैं. संसद भवन की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के लिए कोई बदलाव भी नहीं किया गया है. यही वजह है कि आज भी यहां उल्टे पंखे ही लगे हुए हैं.
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