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सावन को भगवान शिवजी का प्रिय महीना माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिवजी को खुश करने के लिए उनके भक्त सावन के महीने में कई तरह की पूजा पाठ करते हैं। उन्हें में से एक है सावन के महीने में शिवलिंग पर दूध चढ़ाना। शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं।
धार्मिक मान्यता यह है कि विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान विष की उत्पत्ति हुई। ये विष दुनिया को समाप्त कर सकता था। दुनिया को बचाने के लिए भगवान शिवजी ने इसे पी लिया, जिससे उनका शरीर जलने लगा। उनके शरीर को जलता देख कई देवताओं ने उन पर पानी डालना शुरू कर दिया। लेकिन कोई ज्यादा असर नहीं पड़ा। तभी सभी देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का निवेदन किया। दूध पीने से विष का असर कम हो गया। और उनका शरीर जलने से बच गया। तभी से शिवजी को दूध बहुत प्रिय है। यही कारण है कि भगवान शिवजी को खुश करने के लिए शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है।
आयुर्वेद के मुताबिक सावन के महीने में कीटाणुओं का अधिक प्रकोप रहता है। वर्षा के कारण अधिकतर कीटाणु जानवरों की चरने वाली घास के अग्र भाग पर आ जाते है। वर्षा ऋतु की घास को चरने के कारण विषैले तत्व सीधे जानवरों के पेट में चले जाते है जिससे जानवरों का रक्त दूषित हो जाता है। रक्त से ही दूध का निर्माण होता है, इसलिए दूध भी दूषित होकर हमें प्राप्त होता है। दूषित दूध को सेंवन करने पर हमारा स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। अतः हम वर्षा ऋतु के दूध का सेंवन न करके भगवान शिव को चढ़ा देते है।
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